Wednesday 7 December 2011

SAMVAD

संवाद अर्थहीन,बेमानी 
रिश्तों की तरह 
होते है,
 ढोते है शब्दों की लाश
 अपने ही कंधो पर
आती है सड़ांध
 और
 उतार कर फेंक देना 
फिर भी आसान नही होता          
 लाश को 
 चलना पड़ता है तपती दुपहरी में 
 दूर तक 
 छाँव की तलाश में,
छाँव , बेमानी
छाले पड़े है 
 दिल -पाँव में 
 दूभर है जीना ,
 मरना और भी |
  •    @कंचन


  
 

AVASAD

अवसाद  कहीं गहरे घुलता है
 अपने कसैले और खारेपन के साथ
 और भिगोता चला जाता है
 भीतर सब कुछ
 सूख चुकी  आँखों  से फिर कुछ रिसता नही
बंद हो जाता है सब कुछ
सारे सुराख़
 जो कही और जाने के लिए होते है |
मगर अवसाद फैलता है गहरी ख़ामोशी
 शून्यता|
 विस्तार  है  अवसाद  अकेलेपन का |
  कंचन @      copyright 
 

Monday 10 October 2011

GEET

वक्त  के साथ गुजर जाऊं  तो अच्छा है ,
बहते हुए जल  के साथ बह  जाऊं तो अच्छा है ,
ठहराव  न हो ,पावों में न हो जकड़न,
बहती हवा के साथ  उड़ जाऊं  तो अच्छा  है ,
दिल की राहो  में दिलबर का हो साथ तो अच्छा है , 
आँखों  के चिराग हों  महफूज़ वक़्त  के थपेड़ों से ,
ग़ज़ल बन के गुनगुनाऊँ  तो अच्छा है,
बसंत की मानिंद भर बन के  मुस्कुराऊं  तो अच्छा है |
               @कंचन














Sunday 9 October 2011

RET ME NAV

कैसे चलेगी जीवन की नाव
सूखे, रेत के रेगिस्तान में
रेत  में  नाव  नही  चलती
नाव के लिए पानी चाहिए 
चाहे छोटी  सी नदी  हो |
थोडा बड़ा  समन्दर हो |
पानी की तरलता चाहिए 
चाहे लहरों  के थपेड़े हों ,
मनभावनी  बयार  हो ,
साथ में पतवार  हो ,
जो नाव को पानी पर  चला सके
मनचाही दिशा में  ले  जा सके |
रेत में  कहीं  नाव चलती है |
नहीं ,रेत में नाव नहीं चलती |



Monday 26 September 2011

jivan

संयत  कर  अपने मन को ,
अपनी भावनाएं अपने जीवन को 
सपनो की दुनिया से  बहार निकल 
जीवन को सजाना ,
संवारना नये सिरे से 
फिर से बार -बार 
एक नही अनेको बार 
विश्वास के धागे को सीना
सीते  हुए आगे बढना
निरंतर 
नये जीवन नये सपनो 
नई धरोहर के लिए 
क्यूँ की 
सिर्फ जीना 
और एक जीवन जी कर 
मर जाना ही जीवन नही है|
साहस  कर निरंतर उठना ,
पराजय को  ललकारना 
पछाड़ना 
और प्रगति के  मार्ग  को 
परास्त करना ही जीवन है|
धरोहरों को सहेजना 
और उनसे नई  संरचना 
का  निर्माण  करना ही 
जीवन है|
   @कंचन
  

nav-shringar

रेशमी धूप के साये है 
मौसम भी कुछ गुलाबी है |
पत्ते-पत्ते में है हरियाली
फिजां भी कुछ शराबी है |
झर रही है किरने आसमानों से
 रश्मियाँ गा रही है तराने से  
 छिड़ी  है राग -रागिनियाँ सी ,
सुरों के फैले है उजाले से |
उतर रही है धरा पर साँझ  की दुल्हन
 सिमट  रहे है अब धूप के साये भी |हो रहा है नव-श्रृंगार धरा से गगन  तक,भर रही हो मांग जैसे दुल्हन की |

Wednesday 14 September 2011

Gazal

क्या हुआ? जो तुम हिन्दू हो मैं मुसलमान हूँ,
तुम भी इन्सान हो, मैं भी इन्सान हूँ |
जलते हैं चिराग मुहब्बत के जब दिलों में,
मिट जाते है फर्क सभी, इन्सान और इन्सान में |

फर्क क्यूँ ,कितना ,कैसा है  कोई समझाए ,
खून का रंग  कहाँ जुदा है कोई बतलाये |
दर्द मुफलिसी का एक -सा है जमाने में ,
फिर कहाँ कोई गैर है ,इस अफसाने में |
सच है  कि तुम हिन्दू हो ,मैं मुसलमान हूँ ,
तुम भी इन्सान हो ,मैं भी इंसान हूँ |

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Saturday 3 September 2011

Kavita-Saya

महसूस   करो
अपने  अंदर  से
आवाज   आएगी
की तुम 
अकेले  नही  हो
तुम्हारे  साथ 
तुम्हारा  साया   है |
जो  कभी  साथ  नही  छोड़ेगा

अगर तुम  
इसे  महसूस  करोगे |

@ Copyright