Wednesday 7 December 2011

SAMVAD

संवाद अर्थहीन,बेमानी 
रिश्तों की तरह 
होते है,
 ढोते है शब्दों की लाश
 अपने ही कंधो पर
आती है सड़ांध
 और
 उतार कर फेंक देना 
फिर भी आसान नही होता          
 लाश को 
 चलना पड़ता है तपती दुपहरी में 
 दूर तक 
 छाँव की तलाश में,
छाँव , बेमानी
छाले पड़े है 
 दिल -पाँव में 
 दूभर है जीना ,
 मरना और भी |
  •    @कंचन


  
 

AVASAD

अवसाद  कहीं गहरे घुलता है
 अपने कसैले और खारेपन के साथ
 और भिगोता चला जाता है
 भीतर सब कुछ
 सूख चुकी  आँखों  से फिर कुछ रिसता नही
बंद हो जाता है सब कुछ
सारे सुराख़
 जो कही और जाने के लिए होते है |
मगर अवसाद फैलता है गहरी ख़ामोशी
 शून्यता|
 विस्तार  है  अवसाद  अकेलेपन का |
  कंचन @      copyright