Monday 12 March 2012

Kanchan Neeraj: vivshta

Kanchan Neeraj: vivshta:  किसने तय कर दिए दायरे    बना दिए मानक  घेर दिया एक गोल घेरा  बिना कोनो का  लुढ़कती रहती है इच्छाएं  इसी में इधर-उधर ,गोल- गोल । क्या वजह रह...

Kanchan Neeraj: vivshta

Kanchan Neeraj: vivshta:  किसने तय कर दिए दायरे    बना दिए मानक  घेर दिया एक गोल घेरा  बिना कोनो का  लुढ़कती रहती है इच्छाएं  इसी में इधर-उधर ,गोल- गोल । क्या वजह रह...

vivshta

 किसने तय कर दिए दायरे 
  बना दिए मानक 
घेर दिया एक गोल घेरा 
बिना कोनो का 
लुढ़कती रहती है इच्छाएं 
इसी में इधर-उधर ,गोल- गोल ।
क्या वजह रही होगी 
मिट तो सकती थी लकीरे 
फिर क्यों फेर लिया गया चेहरा ,
क्या है रहस्य 
क्या स्वीकार्यता संभावनाओं का अंत नही कर देती 
विवशता 
इतनी प्रबल नही होती ।
की हाथ पर हाथ धरे बैठ जाया जाये 
और चुप्पी साध ली जाये ,
सारी संभावनाओ के खिलाफ
गर्दन तक खिंच कर रेशमी लिहाफ 
भुला   दिया जाये
आजादी की गंध को
और एडियाँ घिसते बिता दी जाये 
सोने के पिंजरे में कैद  हो कर सारी जिन्दगी ।         
@कंचन             

Tuesday 6 March 2012

kvita

 कविता 
 केवल सुखों का दस्तावेज नही है 
 कुछ दुःख भी है इनमे 
 सुख के साथ 
 सारे रंग होते है यहाँ 
 अपने-अपने रंग के साथ ।
कुछ स्याह-सुनहरी यादें 
कुछ काले-उजले पल 
हर वो क्षण  वो भाव जिनमे 

जीता है मानव    
 मरता भी है ।क्यूँ की जीवन शाश्वत है 
सुख-दुःख भी शाश्वत है ।
 गुथें है एक ही धागे में 
कुछ आगे कुछ पीछे 
कुछ नन्हे  कुछ बड़े 
पर सब अपनेपन के साथ है 
अपनी जगह घेरे हुए 
कम या तो ज्यादा ।
   @kanchan

prem ki kvitayen

  मै देर तक लिखती रहूंगी
  प्रेम की कविताएँ
  क्यूँ की प्रेम
  कहीं भिन जाता है
  रगों में और एकाकार हो जाती है
  दो धुर विरोधी आत्माएं ,
  एक नर-एक मादा।
  जब प्रेम सीन्झता है
  आत्मा तक
  फिर निराकार हो जाते है
  सारे अंतर्विरोध और
एक अनोखा संगीत पैदा होता  है

    साझेदारी का ।
प्रेम व्याप्त है जड़ -चेतन जगत में
जैसे धड़कन जीवन में
इसीलिए
प्रेम की कविताएँ
मै देर तक रचती रहूंगी ।
  @कंचन