Wednesday, December 7, 2011

AVASAD

अवसाद  कहीं गहरे घुलता है
 अपने कसैले और खारेपन के साथ
 और भिगोता चला जाता है
 भीतर सब कुछ
 सूख चुकी  आँखों  से फिर कुछ रिसता नही
बंद हो जाता है सब कुछ
सारे सुराख़
 जो कही और जाने के लिए होते है |
मगर अवसाद फैलता है गहरी ख़ामोशी
 शून्यता|
 विस्तार  है  अवसाद  अकेलेपन का |
  कंचन @      copyright 
 

1 comment:

  1. behtareen abhivyakti
    shabdon ke bhaav bahut gahre hain jo dil ko chhoote hain.
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    aabhaar

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