अवसाद कहीं गहरे घुलता है
अपने कसैले और खारेपन के साथ
और भिगोता चला जाता है
भीतर सब कुछ
सूख चुकी आँखों से फिर कुछ रिसता नही
बंद हो जाता है सब कुछ
सारे सुराख़
जो कही और जाने के लिए होते है |
मगर अवसाद फैलता है गहरी ख़ामोशी
शून्यता|
विस्तार है अवसाद अकेलेपन का |
कंचन @ copyright
अपने कसैले और खारेपन के साथ
और भिगोता चला जाता है
भीतर सब कुछ
सूख चुकी आँखों से फिर कुछ रिसता नही
बंद हो जाता है सब कुछ
सारे सुराख़
जो कही और जाने के लिए होते है |
मगर अवसाद फैलता है गहरी ख़ामोशी
शून्यता|
विस्तार है अवसाद अकेलेपन का |
कंचन @ copyright
behtareen abhivyakti
ReplyDeleteshabdon ke bhaav bahut gahre hain jo dil ko chhoote hain.
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aabhaar