Monday, October 10, 2011

GEET

वक्त  के साथ गुजर जाऊं  तो अच्छा है ,
बहते हुए जल  के साथ बह  जाऊं तो अच्छा है ,
ठहराव  न हो ,पावों में न हो जकड़न,
बहती हवा के साथ  उड़ जाऊं  तो अच्छा  है ,
दिल की राहो  में दिलबर का हो साथ तो अच्छा है , 
आँखों  के चिराग हों  महफूज़ वक़्त  के थपेड़ों से ,
ग़ज़ल बन के गुनगुनाऊँ  तो अच्छा है,
बसंत की मानिंद भर बन के  मुस्कुराऊं  तो अच्छा है |
               @कंचन














2 comments:

  1. कंचन जी बहुत ही अच्छा लिखतीं हैं आप.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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