रेशमी धूप के साये है
मौसम भी कुछ गुलाबी है |
पत्ते-पत्ते में है हरियाली
फिजां भी कुछ शराबी है |
झर रही है किरने आसमानों से
रश्मियाँ गा रही है तराने से
छिड़ी है राग -रागिनियाँ सी ,
सुरों के फैले है उजाले से |
उतर रही है धरा पर साँझ की दुल्हन
सिमट रहे है अब धूप के साये भी |हो रहा है नव-श्रृंगार धरा से गगन तक,भर रही हो मांग जैसे दुल्हन की |
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