Monday, September 26, 2011

nav-shringar

रेशमी धूप के साये है 
मौसम भी कुछ गुलाबी है |
पत्ते-पत्ते में है हरियाली
फिजां भी कुछ शराबी है |
झर रही है किरने आसमानों से
 रश्मियाँ गा रही है तराने से  
 छिड़ी  है राग -रागिनियाँ सी ,
सुरों के फैले है उजाले से |
उतर रही है धरा पर साँझ  की दुल्हन
 सिमट  रहे है अब धूप के साये भी |हो रहा है नव-श्रृंगार धरा से गगन  तक,भर रही हो मांग जैसे दुल्हन की |

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