Thursday 5 April 2012

entjar prem ka vistar hai.

मै दो अंशो में विभक्त हो गयी हू
 एक अंश सजीव सा 
मेरे समीप है ।
दूसरा हवाओ  में 
कहीं गुम गया है 
और हवाएं मुझे जला रही हैं।
  मैं विस्मित हूँ 
सम्पूर्ण होते हुए भी अपूर्ण हूँ 
फटी हुयी  सी  
दर्द बन कर टीस रही हैं यादें 
और इंतजार उदास दुपहरिया सी 
पसरी  हुयी है आँगन में ।
प्रेम दो दिलों को जोड़ देता है 
ऐसे जैसे रात दिन से जुडी है ,
फ़ूल शाख से जुडी है ,
वर्षा बादल से जुडी है ,
नदिया जल से जुडी है ।
यादें प्रेम का अंतर्नाद है ,
विछोह प्रेम का विलाप है ,
इंतजार प्रेम का विस्तार है ।
मैं प्रेम को जी रही हूँ ।
कंचन @  

2 comments:

  1. यादें प्रेम का अंतर्नाद है ,
    विछोह प्रेम का विलाप है ,
    इंतजार प्रेम का विस्तार है ।
    मैं प्रेम को जी रही हूँ ।

    didi bahut sundar..khaskar in char lines ne to dil jeet liya

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