तुम शब्द हो ,
जो मेरे भावों को व्यक्त करते हो
तुम्हारे बिन
मैं अव्यक्त रह जाती हूँ .
तुम सुगंध हो
जो बसती है मेरी देह में
जगाती है तृष्णा
तुम्हारे बिन
मै रसहीन हो जाती हूँ.
तुम रंग हो मेरे जीवन में
फूलों की तरह ,भांति -भांति के,
तुम्हारे बिन मैं
रंगहीन हो जाती हूँ .
मेरे प्रिय ,
तुम श्वांस हो मेरी ,
तुम्हारे बिन
मैं निर्जीव हो जाती हूँ .
@kanchan
apratim ...........
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti
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aabhaar !!!
बहुत सुन्दर और मृदु भावों की कविता है कंचन.....
ReplyDeleteतुम्हारे बिन
मैं अव्यक्त रह जाती हूँ .
तुम सुगंध हो
जो बसती है मेरी देह में
जगाती है तृष्णा
तुम्हारे बिन
मै रसहीन हो जाती हूँ.
prem bina jivan sach mein nirjeev hota hai...bahut sundar hai didi
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