Thursday 12 April 2012

tumhare bin

 तुम शब्द हो ,
 जो मेरे  भावों  को व्यक्त करते हो 
 तुम्हारे बिन 
 मैं अव्यक्त रह जाती हूँ .
 तुम सुगंध हो 
जो बसती  है मेरी देह में
जगाती है तृष्णा 
तुम्हारे बिन 
मै रसहीन हो जाती हूँ.
तुम रंग हो मेरे जीवन में 
फूलों की तरह ,भांति -भांति के, 
तुम्हारे बिन मैं 
रंगहीन हो जाती हूँ .
मेरे प्रिय ,
तुम श्वांस हो मेरी ,
तुम्हारे बिन 
मैं निर्जीव हो जाती हूँ .
   @kanchan

3 comments:

  1. apratim ...........
    bahut sundar abhivyakti
    -
    -
    aabhaar !!!

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  2. बहुत सुन्दर और मृदु भावों की कविता है कंचन.....

    तुम्हारे बिन
    मैं अव्यक्त रह जाती हूँ .
    तुम सुगंध हो
    जो बसती है मेरी देह में
    जगाती है तृष्णा
    तुम्हारे बिन
    मै रसहीन हो जाती हूँ.

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  3. prem bina jivan sach mein nirjeev hota hai...bahut sundar hai didi

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