मै देर तक लिखती रहूंगी
प्रेम की कविताएँ
क्यूँ की प्रेम
कहीं भिन जाता है
रगों में और एकाकार हो जाती है
दो धुर विरोधी आत्माएं ,
एक नर-एक मादा।
जब प्रेम सीन्झता है
आत्मा तक
फिर निराकार हो जाते है
सारे अंतर्विरोध और
एक अनोखा संगीत पैदा होता है
साझेदारी का ।
प्रेम व्याप्त है जड़ -चेतन जगत में
जैसे धड़कन जीवन में
इसीलिए
प्रेम की कविताएँ
मै देर तक रचती रहूंगी ।
@कंचन
प्रेम की कविताएँ
क्यूँ की प्रेम
कहीं भिन जाता है
रगों में और एकाकार हो जाती है
दो धुर विरोधी आत्माएं ,
एक नर-एक मादा।
जब प्रेम सीन्झता है
आत्मा तक
फिर निराकार हो जाते है
सारे अंतर्विरोध और
एक अनोखा संगीत पैदा होता है
साझेदारी का ।
प्रेम व्याप्त है जड़ -चेतन जगत में
जैसे धड़कन जीवन में
इसीलिए
प्रेम की कविताएँ
मै देर तक रचती रहूंगी ।
@कंचन
bahut badiya,
ReplyDeletethanx rajiv
Deletebehtareen kavita hai
ReplyDeletepadhkar mugdh hun
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haardik shubh kaamnayen
aabhaar !!!
thanx prakash ji
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