Tuesday, March 6, 2012

prem ki kvitayen

  मै देर तक लिखती रहूंगी
  प्रेम की कविताएँ
  क्यूँ की प्रेम
  कहीं भिन जाता है
  रगों में और एकाकार हो जाती है
  दो धुर विरोधी आत्माएं ,
  एक नर-एक मादा।
  जब प्रेम सीन्झता है
  आत्मा तक
  फिर निराकार हो जाते है
  सारे अंतर्विरोध और
एक अनोखा संगीत पैदा होता  है

    साझेदारी का ।
प्रेम व्याप्त है जड़ -चेतन जगत में
जैसे धड़कन जीवन में
इसीलिए
प्रेम की कविताएँ
मै देर तक रचती रहूंगी ।
  @कंचन 

4 comments: