Tuesday, April 17, 2012
Kanchan Neeraj: दो मौसम
Kanchan Neeraj: दो मौसम: देखा दरख़्त की छाँव में , दो मौसमों को एक साथ बैठे हुए , एक बासंती दूसरा शरद . दूरियां मौसमी थीं जिन्हें दिलों ने नही स्वीकारा और साथ ह...
दो मौसम
देखा दरख़्त की छाँव में ,
दो मौसमों को एक साथ बैठे हुए ,
एक बासंती दूसरा शरद .
दूरियां मौसमी थीं
जिन्हें दिलों ने नही स्वीकारा
और साथ हो लिए .
मिट गयी दूरियां जब
साझा हो गये सारे ख्वाब
पेड़ की छाँव तले
कुछ कसमे कुछ वादे हुए .
और फिर मौसम बदला
बासंती लौट गयी अपने घर
जो कहीं दूर पहाड़ों पर था ,
जहाँ जाना कठिन था ,
रास्ता दुर्गम था ,
कंटीली झाड़ियाँ थीं ,
चट्टानें थीं और कुछ निगाहे थीं
जो आग उगलती थीं .
प्रेम जिनके लिए वर्जित था
और मैदानी विजातीय थे .
बड़ा अहम होता है
प्रेम से भी ज्यादा अहम ,
कुछ जलते हुए सवाल .
दब कर रह जाती हैं सिसकियाँ
घुटी रह जाती है आवाज
पहाड़ों में गूंजती है विरह की तानें
चट्टानें और भी सख्त हो जाती हैं .
कंटीली झाड़ियों पर पीले रंग के फूल नही खिलते हैं ,
जिनमे होती है खुशबु और पराग .
शरद अड़ जाता है चट्टानों के आगे ,
पर चट्टान पिघलते नहीं हैं ,
मौसम की तरह वे बदलते नहीं हैं .
सख्त जीवन, जीवन से भी सख्त उसूल ,
उसूलों के लिए मिटा दिए जाते हैं
प्यार के फूल .
किसी दरख्त पर लटका दिया जाता है
दो मौसमों को
और सुना दिया जाता है फरमान ,
प्रेम वर्जित है ,
चट्टानों के रंग एक से होते हैं ,
केवल स्याह .
ख्वाब चिंदी-चिंदी हो कर
पहाड़ी हवाओं में गुम हो जाते हैं .
@कंचन
Thursday, April 12, 2012
Kanchan Neeraj: tumhare bin
Kanchan Neeraj: tumhare bin: तुम शब्द हो , जो मेरे भावों को व्यक्त करते हो तुम्हारे बिन मैं अव्यक्त रह जाती हूँ . तुम सुगंध हो जो बसती है मेरी देह में जगाती ह...
tumhare bin
तुम शब्द हो ,
जो मेरे भावों को व्यक्त करते हो
तुम्हारे बिन
मैं अव्यक्त रह जाती हूँ .
तुम सुगंध हो
जो बसती है मेरी देह में
जगाती है तृष्णा
तुम्हारे बिन
मै रसहीन हो जाती हूँ.
तुम रंग हो मेरे जीवन में
फूलों की तरह ,भांति -भांति के,
तुम्हारे बिन मैं
रंगहीन हो जाती हूँ .
मेरे प्रिय ,
तुम श्वांस हो मेरी ,
तुम्हारे बिन
मैं निर्जीव हो जाती हूँ .
@kanchan
Thursday, April 5, 2012
Kanchan Neeraj: tumhara hona
Kanchan Neeraj: tumhara hona: तुम्हारा होना एक जीवित एहसास , तुम्हारा ना होना एहसासों का गुम हो जाना बीहड़ो में , या फिर रेत के बवंडर में , फिर दूर तक सन्नाटा होता है ...
Kanchan Neeraj: tumhara hona
Kanchan Neeraj: tumhara hona: तुम्हारा होना एक जीवित एहसास , तुम्हारा ना होना एहसासों का गुम हो जाना बीहड़ो में , या फिर रेत के बवंडर में , फिर दूर तक सन्नाटा होता है ...
tumhara hona
तुम्हारा होना
एक जीवित एहसास ,
तुम्हारा ना होना
एहसासों का गुम हो जाना
बीहड़ो में ,
या फिर रेत के बवंडर में ,
फिर दूर तक सन्नाटा होता है ।
नही ....
शोर होता है ,
यादों का बीहड़ शोर
जो परे चल जाता है
एहसासों के ।
और यादें
दर्द में तब्दील हो जाती हैं ।
कंचन @
Kanchan Neeraj: entjar prem ka vistar hai.
Kanchan Neeraj: entjar prem ka vistar hai.: मै दो अंशो में विभक्त हो गयी हू एक अंश सजीव सा मेरे समीप है । दूसरा हवाओ में कहीं गुम गया है और हवाएं मुझे जला रही हैं। मैं विस्मित ह...
entjar prem ka vistar hai.
मै दो अंशो में विभक्त हो गयी हू
एक अंश सजीव सा
मेरे समीप है ।
दूसरा हवाओ में
कहीं गुम गया है
और हवाएं मुझे जला रही हैं।
मैं विस्मित हूँ
सम्पूर्ण होते हुए भी अपूर्ण हूँ
फटी हुयी सी
दर्द बन कर टीस रही हैं यादें
और इंतजार उदास दुपहरिया सी
पसरी हुयी है आँगन में ।
प्रेम दो दिलों को जोड़ देता है
ऐसे जैसे रात दिन से जुडी है ,
फ़ूल शाख से जुडी है ,
वर्षा बादल से जुडी है ,
नदिया जल से जुडी है ।
यादें प्रेम का अंतर्नाद है ,
विछोह प्रेम का विलाप है ,
इंतजार प्रेम का विस्तार है ।
मैं प्रेम को जी रही हूँ ।
कंचन @
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